गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा

आइए आज हम बात करते हैं कि गुरु बनाना क्यों आवश्यक है
गुरु
जीवन में हर कार्य किसी न किसी के द्वारा सिखाया जाता है। वह 'गुरु' कहलाता है। साधारणतया गुरु का महत्व अध्यात्म में सर्वोपरि माना गया है जिसमें दीक्षा किसी न किसी रूप में दी जाकर शिष्य की देखरेख उसके कल्याण की भावना से की जाती है।
गुरू की शिक्षा
भले इस शिक्षा ने हमें चांद तक पहुंचा दिया हो लेकिन इसने हमें इतना स्वार्थी, चालक व लोभी भी बना दिया है कि आज हम वास्तविक परमात्मा के अस्तित्व में भी कमी ढूंढ लेते हैं। परंतु इसी शिक्षा को यदि हम अपने आत्म कल्याण के लिए प्रयोग करेंगे तो हमें परमात्मा प्राप्ति तो होगी ही जीवन में हर वह सुख मिलेगा जिसके लिए हम उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं।
गुरू पूर्णिमा
सद्गुरु सभी बंधनों से मुक्त कर देगा
सात समुन्द्र की मसि करूं, लेखनि करूं बनिराय।
धरती का कागद करूं, गुरु गुण लिखा न जाय
सब पृथ्वी का कागज, सब जंगल की कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते |
गुरु के बिना जीवन अधूरा और दिशाहीन है।
कभी सड़क पर रहने वाले उन बच्चों का जीवन देखिए जिनका कोई गुरू नहीं होता। उन्हें न तो शिक्षा मिलती है ना ही संस्कार। जिस तरह मां बाप के बिना बच्चा अनाथ होता है उसी तरह गुरु के बिना शिष्य।
जैसे सूर्य अंधकार को चीरकर उजियारा कर देता है उसी समान गुरू दीपक की भांति शिष्य के जीवन को ज्ञान रूपी प्रकाश से भर देता है।
गुरू गुरू में भेद होता है कैसे जाने
कबीर, सात द्वीप नौ खण्ड में, गुरु से बड़ा ना कोय। करता करे ना कर सकै, गुरु करे सो होय।।
सतगुरु भक्ति मुक्ति के दानी, सतगुरु बिना न छूटै खानी। सतगुरु भक्ति कराकर मुक्ति प्रदान करते हैं। वे भक्ति तथा मुक्ति के दाता हैं। सतगुरु के बिना चार खानी (अण्डज, जेरज, उद्भज, श्वेतज, ये चार खानी हैं, इनमें जन्म-मरण होता है।) का यह चक्र कभी नहीं छुटता। (1) अण्डजः- जो प्राणी अण्डे से उत्पन्न होते हैं जैसे पक्षी, इसको अण्डज खानी कहते हैं। (2) जेरजः- जो जेर से उत्पन्न होते हैं, जैसे मानव तथा पशु। (3) उद्भजः- जो स्वयं उत्पन्न होते हैं, जैसे गेहूं में सरसी, ढ़ोरा तथा किसी पदार्थ के खट्टा होने पर उसमें कीड़े उत्पन्न होना, उद्भज खानी है। (4) श्वेतजः- जो पसीने से उत्पन्न होते हैं जैसे मानव शरीर या पशु के शरीर में ढ़ेरे, जूम, चिचड़ आदि ये श्वेतज खानी कहलाती है। इस प्रकार चार खानी से जीव उत्पन्न होते हैं जो कुल 84 लाख प्रकार की योनि अर्थात् शरीर का जीव धारण करते हैं और जन्मते-मरते हैं। यह चार खानी का संकट सतगुरु बिना नहीं मिट (समाप्त हो) सकता। जहां शिक्षक ( गुरु) आपको शिक्षा का महत्व समझा कर पाठ पढ़ाता है तो सदगुरु आपको परमात्म ज्ञान देकर सभी बंधनों से छुड़वाता है जिसे सदगुरू बंदी छोड़ भी कहते हैं। इस समय धरती पर संत रामपाल जी महाराज बंदीछोड़ कबीर जी के अवतार रूप में मौजूद हैं। संत रामपाल जी से नाम दीक्षा लेकर और सतभक्ति करके आप सभी बंधनों से मुक्त हो सकते हैं।
सतगुरु संसार सागर से पार करने वाले कोली (खेवट)हैं। सतगुरु ही हमारी डोली अर्थात् जीवन की गाड़ी (डोली :- जैसे दुल्हन से दुल्हा विवाह कर जिस गाड़ी में बैठाकर ले जाता है, उसे डोली कहते हैं।) को निर्बाध जंगलों से पार करता है।
सदगुरु के लक्षण🤔
सतगुरु सम कोई नहीं, सात दीप नौ खण्ड |
तीन लोक न पाइये, अरु इकइस ब्रह्मणड ||
सात द्वीप, नौ खण्ड, तीन लोक, इक्कीस ब्रह्माण्डों में सद्गुरु के समान कोई हितकारी नहीं पायेंगे |
सदगुरु केवल एक समय पर एक ही होता है और वह होता स्वयं परमात्मा ही है जो सर्वज्ञान ज्ञाता होता है। इस समय पूरे ब्रह्मांड में केवल सतगुरू संत रामपाल जी महाराज जी सच्चे आध्यात्मिक गुरु हैं जो संपूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए परमात्म ज्ञान से अवगत करा रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें साधना चैनल प्रतिदिन सांय 7:30-8:30 pm.


Comments
Post a Comment